देह पर देहरी मचा आज विश्व में प्रहलय, हे नीलकंठेश्वर तुम्ही उन्हें राह दिखाओ। देह पर देहरी मचा आज विश्व में प्रहलय, हे नीलकंठेश्वर तुम्ही उन्हें राह दिखाओ।
बहुत सख्त मिट्टी से बना है वो शायद, जो रोज़ हसरतें कुरेद कर जिये जाता है। बहुत सख्त मिट्टी से बना है वो शायद, जो रोज़ हसरतें कुरेद कर जिये जाता है।
सब बेबसी के मारे है,अनदेखा अनजाना सा हैं। सब बेबसी के मारे है,अनदेखा अनजाना सा हैं।
ग़ज़ल ग़ज़ल
एक ग़ज़ल...। एक ग़ज़ल...।
आज सुर गा न सकेंगे संगीत...। आज सुर गा न सकेंगे संगीत...।